Natasha

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राजा की रानी

अभया हँसी और कुछ देर चुप रहकर बोली, “यह कुछ नहीं है, आप कैसे हैं सो कहिए।”

“कैसा हूँ सो मैं खुद नहीं जानता, दूसरे को किस तरह बताऊँ?” फिर कुछ सोचकर बोला, “जब तक कोई नौकरी न मिल जाय तब तक इस प्रश्न का जवाब देना कठिन है। रोहिणी बाबू कहते थे-” मेरे मुँह की बात मुँह में ही रह गयी। रोहिणी भइया अपनी फटी चिट्ठियों से अस्वाभाविक फटर-फटर शब्द करते हुए भीतर घुस आए और किसी की ओर भी दृष्टिपात किये बगैर उन्होंने पानी का गिलास उठा लिया। एक ही साँस में उन्होंने उसे आधा खाली कर दिया। बाकी दो-तीन घूँट में जबर्दस्ती पीकर शून्य गिलास काठ की मेज पर रख दिया, और वे यह कहते-कहते बाहर चल दिए, “जाने दो खाली पानी पीकर ही पेट भर लूँ। मेरा यहाँ पर और कौन बैठा है जो भूख लगने पर खाने को देगा!”

मैंने अवाक् होकर अभया की ओर ताका। पल-भर के लिए उसका मुँह सुर्ख हो गया; किन्तु, उसी क्षण उसने अपने आपको सँभाल लिया और पहले दीखता है!”

रोहिणी ने यह बात कानों पर ही नहीं दी, और वे बाहर चल दिए, किन्तु, आधा मिनट खत्म होने के पहले ही वापिस लौट आए और किवाड़ें के सामने खड़े होकर मुझे सम्बोधन कर बोले, “सारे दिन ऑफिस में मेहनत करने के बाद भूख के मारे सिर चक्कर खा रहा था श्रीकान्त बाबू, इसीलिए उस समय आपसे बात न कर सका, कुछ खयाल न करिएगा।”

मैंने कहा, “नहीं।”

“उन्होंने फिर कहा, “आप जहाँ ठहरे हैं वहाँ मेरे लिए भी जरा-सा बन्दोबस्त कर सकते हैं?”

उनके मुँह की भाव-भंगी को देखकर मैं हँस पड़ा! बोला, किन्तु वहाँ पर पूडियों और मोहन-भोग का डौल नहीं है।”

रोहिणी भइया बोले, “जरूरत ही क्या है! भूख के समय कोई यदि जरा-सा गुड़ और जल देवे तो वह अमृत है। यहाँ तो वह भी कौन देता है?”

मैंने जानने की इच्छा से अभया की ओर दृष्टि डाली। तुरन्त ही वह धीरे से बोली, “सिर दर्द करता था। इसलिए बेवक्त सो गयी थी, और इसी कारण भोजन बनाने में आज जरा-सी देर हो गयी श्रीकान्त बाबू।”

मैंने आश्चर्य के साथ कहा, “बस, यही अपराध है?”

अभया ने उसी तरह शान्त-भाव से कहा, “यह क्या कोई तुच्छ अपराध है श्रीकान्त बाबू?”

“तुच्छ नहीं तो और क्या है?”

अभया बोली, “आपके समीप तुच्छ हो सकता है, किन्तु जो महाशय अपनी इस फिजूल की गले-पडूको खाने देते हैं वे कैसे माफ करेंगे? मेरा सिर दर्द करे तो उनका काम कैसे चल सकता है?”

रोहिणी बाबू एकदम तड़क कर गर्ज उठे और बोले, “तुम गले-पड़ू हो, मैंने यह कब कहा?”

अभया बोली, “कहोगे क्यों, हजार तरह से दिखा तो रहे हो?”

रोहिणी भइया बोले, “दिखा रहा हूँ! ओह, तुम्हारे मन में जलेबी जैसा पेंच है! यह तुमने मुझसे कब कहा था कि सिर दर्द कर रहा है?”

अभया ने कहा, “कहने से लाभ ही क्या था? क्या तुम विश्वास करते?”

रोहिणी भइया मेरी ओर पलटकर ऊँचे कण्ठ से बोल उठे, “सुनिये श्रीकान्त बाबू, ये सब बातें सुन रखिए। इन्हीं के लिए मैंने देश का त्याग किया- घर लौटने का रास्ता बन्द हो गया- अब इनके मुँह की बात सुनिये। ओह-”

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